Workshop on Child Rights and Media: Journalistic Practices and Report writing

The two-day workshop on child rights and media was organized by PAIRVI at AN Sinha Institute of Social Studies, Patna on 1-2 May 2022. The workshop focused on themes like Child, childhood and child rights, accessing justice for children, laws and regulation for reporting on children, media reporting of children, storytelling /content development and press relations.  Dr. ShipraMathur, PEN Media Foundation, Sunil Jha , Senior Consultant Child Rights, Dr. Akhilesh Kumar, Assistant Professor Patna University, Santosh Upadhyaya, Child Rights Activist, Situ Tiwari, Freelance Journalist, Savita kumari, Hindustan, Pratima Paswan, GGMVH, Pramod Kumar Singh, Dainik Jagran, Ranvijay Kumar, Centre For Advocacy and Research, Ramakant Prasad Chandan, Editorial Adviser Rashtriya Sahara, Swayam Prakash, Senior Journalist and  Anand Madhab, Senior Development Professional and Media Consultant were among the resource persons.  More than 40 youths and citizen journalists were trained in this interactive workshop.  The workshop provided the basic training to citizen journalists, particularly youths, media professionals and child rights activists. Purpose of the workshop is to provide the concepts, information and hands-on training that will help to develop responsible reporting and writing skills that appreciate and respect children’s rights. The workshop helps to understand children’s rights and critically evaluate the reporting of issues affecting children from a human rights or “rights-based” perspective. The workshop is specially designed to engage the youths to develop a broader understanding of child rights, journalistic practices, storytelling and report writing. The workshop makes the participants to understand the child rights and   terminology used in child reporting’s, writing of child related stories/case studies, ethics of child reporting with special focus on child abuse, what journalists usually do wrong and how to get it right. It focuses on basic understanding of the media, news writing skills, connecting people with the press, different formats of storytelling and handling the press relation.

Brief hindi report of the workshop-

बच्चों के मुद्दों पर समाज और मीडिया को साथ चलने की जरूरत

उदासीनता सबसे खतरनाक बीमारी है जो लोगों को प्रभावित कर सकती है और अगर यह उदासीनता बच्चों के प्रति है तो इसका प्रभाव अकल्पनीय रूप से खतरनाक होगा। बाल अधिकार और मीडिया विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में वक्ताओं ने विभिन्न पहलुओं पर बोलते हुए यह बात कही।

कार्यशाला में आए वक्ताओं और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए पैरवी के दीनबंधु वत्स ने कहा कि मीडिया बच्चों के समग्र विकास और अधिकारों के वास्तविक कार्यान्वयन की निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि बच्चों पर मीडिया कवरेज असंगत है और इसमें गहराई का अभाव है। बच्चों से संबंधित घटनाओं को नियमित रिपोर्टिंग से परे जा कर उसे संदर्भ और परिप्रेक्ष्य में और सबसे ऊपर मानवीय दृष्टिकोण से देखने का समय है।

पेन मीडिया फाउंडेशन की निदेशक डॉ. क्षिप्रा माथुर ने बच्चों से जुड़े विभिन्न अभियानों के उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडिया के बीच समन्वय स्थापित करने और बच्चों के अधिकारों के लिए एकजुट होने के तरीकों के साथ ही स्टोरी राइटिंग के संदर्भ मे भी प्रतिभागियों के साथ संवाद किया।

बच्चों से संबंधित घटनाओं, उनके मुद्दों पर होने वाली रिपोर्टिंग के संदर्भ मे बोलते हुए वक्ताओं ने कहा कि प्रचलन मे रहे शब्द मस्तिष्क पर इस कदर हावी हैं कि हम उनके अंतर पर ध्यान नहीं देते। आज कानूनी रूप से जिसकी भी उम्र 18 वर्ष से कम है वह बच्चा या बच्ची है, लेकिन हमारी शब्दावली में आज भी पुराने कानूनों के सम्बोधन हैं। इसे बदलने की जरूरत है। वहीं न केवल खबरों की बल्कि खबर के लिए बच्चों से की जाने वाली बातचीत की भाषा भी बच्चों के प्रति संवेदनशील होनी चाहिए। बाल अधिकारों पर वरिष्ठ कन्सल्टन्ट सुनील झा ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से इस पर प्रतिभागियों से विस्तृत चर्चा की।

कार्यशाला मे बच्चों को सुने जाने पर सभी वक्ताओं ने जोर दिया और कहा कि बच्चों की कहानी या उनके साथ हुई घटना का उल्लेख करते समय इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि बच्चों का हित सर्वप्रथम है। खबर या कहानी लिखते समय यह देखना जरूरी है कि हम उसमें ऐसी कोई जानकारी साझा न करें जिससे कि बच्चे का थोड़ा भी अहित होने की आशंका हो। डॉ. अखिलेश कुमार ने कहा कि चाहे वह कोई पत्रकार हो, पुलिस अधिकारी हो या सामाजिक कार्यकर्ता उन्हे बच्चों की बात सुनने के लिए धैर्य रखना होगा और समय देना होगा।

किसी भी अपराध या दुर्घटना का शिकार हुए बच्चे की मनोदशा को समझे और उसके साथ सहजता व प्रेम से पेश आए बिना आप उसकी बात नहीं जान सकते। खबर लिखते समय उस बच्चे की जगह खुद को रखकर देखें तो बच्चे की बात को बेहतर समझा जा सकता है। पत्रकार सविता कुमारी ने यह बात कही।

यूनिसेफ़ पटना की निपुण गुप्ता ने कहा कि अब मीडिया का संदर्भ व्यापक हो रहा है। सोशल मीडिया ने सभी को पत्रकार बना दिया है। कोई भी अपनी कहानी अब सोशल मीडिया पर लिख सकता है। इसलिए हमें बच्चों के सर्वोत्तम हित को केंद्र में रखते हुए और अधिक सचेत और सजग रहने की जरूरत है।

संतोष उपाध्याय, बंदी अधिकार आंदोलन के कहा कि जूवनाइल जस्टिस एक्ट को न केवल सामाजिक कार्यकर्ताओं को बल्कि पत्रकारों को भी बहुत ध्यान से पढ़ना चाहिए। बच्चों के मामलों मे रिपोर्टिंग करते समय होने वाली कई गलतियों को इस एक्ट को पढ़कर सुधारा जा सकता है।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रतिमा पासवान ने स्टोरी फॉलो अप के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि स्टोरी या खबर साझा कर देने के बाद संबंधित व्यक्तियों पर उसके प्रभाव को देखना भी जरूरी है।

पैरवी व पेन मीडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय कार्यशाला में बिहार के विभिन्न जिलों से आए सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारिता के विद्यार्थियों व मीडिया प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।

in news-