छिंदवाड़ा जिले में स्कूल ड्रॉपआउट बच्चों की स्थिति पर परिचर्चा

पैरवी, नई दिल्ली और सत्यकाम जन कल्याण समिति, छिंदवाड़ा द्वारा ‘मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में स्कूल से ड्रॉपआउट बच्चों की स्थिति’ विषय पर 31 जुलाई को छिंदवाड़ा में एक विमर्श का आयोजन किया गया, जिसमें छिंदवाड़ा जिले में स्कूल से ड्रॉपआउट बच्चों की स्थिति पर किए गए तथ्यान्वेषण की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। वक्ताओं ने बच्चों के शाला छोड़ने की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए इसके कारणों और समाधान की दिशा में उठाए जा सकने वाले कदमों पर चर्चा की।

तथ्यान्वेषण रिपोर्ट साझा करते हुए रजनीश साहिल (पैरवी) व शबाना आज़मी (सत्यकाम जन कल्याण समिति) ने बताया कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2018 से 2021 तक के शिक्षा सत्रों में छिंदवाड़ा जिले के अमरवाड़ा, बिछुआ, छिंदवाड़ा, हर्रई, जुन्नारदेव, मोहखेड़, सौसर, तामिया, चौराई व परासिया विकासखण्ड में कुल 3085 बच्चों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी है। हर्रई व जुन्नारदेव में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की सबसे ज़्यादा संख्या है। आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। 2020-21 में ही 15 से 20 आयुवर्ग के 884 बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। पढ़ाई छोड़ चुके अधिकांश बच्चे आज मजदूरी कर रहे हैं।

रिपोर्ट बताती है कि बच्चों के स्कूल छोड़ने के पीछे प्रमुख कारण परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति और आजीविका के लिए पलायन है। कई बच्चों का परिवार के साथ पलायन करने के कारण और कई का माता-पिता की अनुपस्थिति में घर व भाई-बहनों की देखभाल की जिम्मेदारी के कारण स्कूल नियमित नहीं रह पाता। परिवार द्वारा शिक्षा को महत्व न देना भी बच्चों की शिक्षा में बाधक बनता है। तथ्यान्वेषण में यह भी सामने आया कि स्कूल में शिक्षकों का कठोर रवैया और अनुकूल माहौल की कमी भी पढ़ाई में कमजोर छात्रों के स्कूल छोड़ने का कारण रही है।

शबाना आज़मी ने कहा कि शालात्यागी बच्चों में लड़कियों की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। बेटे-बेटी में भेद और रूढ़िवादी पितृसत्तात्मक सोच की वजह से अधिकतर माता-पिता लड़कियों को पढ़ाना नहीं चाहते। पढ़ाई के लिए दूसरे गांव में तो बिल्कुल नहीं भेजना चाहते। इसलिए गांव में जिस कक्षा तक स्कूल है लड़कियां वहीं तक पढ़ पाती हैं। इसके अलावा कम उम्र में शादी, घर और छोटे भाई-बहनों की देखभाल व मजदूरी के लिए परिवार का पलायन जैसे कारणों से भी लड़कों की तुलना में लड़कियों की पढ़ाई ज्यादा प्रभावित होती है। तथ्यान्वेषण के दौरान 18 वर्ष से कम उम्र में लड़कियों का विवाह कर देने के मामले भी सामने आए हैं।

शालात्यागी बच्चों की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए वन स्टॉप सेंटर की पूर्व प्रशासक राना परवीन ने कहा कि स्थिति बहुत चिंता जनक है। बच्चों के स्कूल छोड़ने के कई कारण हैं जिन पर ध्यान देकर ड्रॉपआउट की संख्या को कम किया जा सकता है। बच्चों की शिक्षा से जुड़ी योजनाओं और विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से परिवार का जुड़ाव कमजोर आर्थिक स्थिति की चुनौती को कम कर सकता है। जन प्रतिनिधियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, शिक्षकों व सजग नागरिकों के सहयोग से बाल-विवाह को रोककर लड़कियों की पढ़ाई जारी रखी जा सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चों और उनके माता-पिता को यह समझना होगा कि पढ़ाई सिर्फ़ नौकरी करने के लिए नहीं बल्कि जीवन को अच्छा बनाने के लिए ज़रूरी है।

अधिवक्ता व समाजसेवी स्मिता गंगराड़े ने कहा कि शिक्षा का बीच में छूटना बच्चों पर कई तरह से मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है और वे हताशा में चले जाते हैं। जरूरी है कि ग्रामसभाओं में ड्रॉपआउट का मुद्दा उठाया जाए। जिन बच्चों को पढ़ाई छोड़े लम्बा समय हो गया है उन्हें पत्राचार से पढ़ाई पूरी करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। बच्चों का शिक्षा से जुड़े रहना जितना ज़रूरी है उतना ही जरूरी है कि उनकी शिक्षा गुणवत्तापूर्ण हो, साथ ही बच्चों के हुनर को चिन्हित कर उन्हें तराशने का काम भी होना चाहिए।

इस विमर्श में 40 से अधिक समाजिक कार्यकर्ताओं, शालात्यागी किशोरियों और उनके माता-पिता, पंचायत प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, अपने विचार व्यक्त किए और स्कूल से बच्चों के ड्रॉपआउट को रोकने की दिशा में अपने सुझाव दिए।