बदलाव की शुरुआत परिवार से करनी होगी, रहना होगा अधिकारों के प्रति जागरूक

जेण्डर, गैर-बराबरी और कानूनी ढांचा पर कार्यशाला

40 से अधिक ग्रामीण किशोरियों व महिलाओं में जेण्डर की समझ बढ़ाने और गैर बराबरी व कानूनी अधिकारों पर प्रशिक्षण के लिए पैरवी, नई दिल्ली और सत्यकाम जन कल्याण समिति, छिंदवाड़ा द्वारा 01 अगस्त 2023 को होटल शानू, छिंदवाड़ा में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में ‘जेण्डर; दृष्टिकोण निर्माण’ पर बोलते हुए पैरवी, नई दिल्ली के रजनीश साहिल ने कहा कि हम सदियों से मनुष्य को महिला और पुरुष में बांटकर देखने के आदी रहे हैं। संबंध हों या कार्य उन्हें हमने महिला और पुरुष के भेद में बांट रखा है। इन्ही धारणाओं के कारण महिला, पुरुष व अन्य पहचानों के बीच भेदभाव और गैर-बराबरी की व्यवस्था का अस्तित्व बना है और किसी अलग पहचान, व्यवस्था को स्वीकार करना मुश्किल होता है। अभी हम महिला-पुरुष के भेद की अवधारणा को ही पूरी तरह नहीं तोड़ सके हैं। इसे तोड़ने के लिए शुरुआती इकाई परिवार है। महिलाओं को अपने परिवारों से जेण्डर के स्थापित दृष्टिकोण में बदलाव की शुरुआत करनी होगी।

शैफाली शर्मा (मेजर अमित एजुकेशन सोसायटी) ने ग़ैर बराबरी के बारे में बोलते हुए कहा कि महिलाओं के साथ गैर बराबरी जन्म के पहले से ही शुरू हो जाती है। भ्रूणहत्या, लिंग परीक्षण इसी गैर बराबरी के उदाहरण हैं। बच्चों के साथ लिंग भेद का प्रभाव उनके जीवन पर पड़ता है और वह गैर बराबरी के प्रोत्साहन का हिस्सा बन जाते हैं। गैर बराबरी मानसिक, आर्थिक, शारीरिक व लैंगिक हिंसा को जन्म देती है। उन्होंने कहा कि गैर बराबरी को मिटाने के लिए महिलाओं को ही पहल करनी होगी। इस संदर्भ में उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की जानकारी प्रदान की।

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ भेदभाव और शोषण के बारे में प्रतिभागियों से बात करते हुए शबाना आजमी (सत्यकाम जन कल्याण समिति) ने विशाखा गाइडलाइन व अन्य कानूनी प्रावधानों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि महिला विरोधी व्यवहार, व्यवस्था को नियति मान लेना, अनदेखा करना या विरोध न करना इस भेदभाव व शोषण को बढ़ावा देता है। आवश्यकता है कि इसकी रोकथाम के लिए महिलाएं आवाज उठाएं और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों पर एक्शन के लिए आंतरिक समिति के गठन और क्रियान्वयन को मजबूत किया जाए। उन्होंने आंतरिक समिति की संरचना की जानकारी भी दी।

भावना कुमरे, प्रशासक, वन स्टॉप सेंटर ने सेंटर द्वारा संचालित कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए महिलाओं को दी जाने वाली विधिक सहायता पर विस्तार से चर्चा की। जेण्डर असमानता पर प्रतिभागियों से बात करते हुए ऐमन अंसारी ने कहा कि जेण्डर समाज द्वारा निर्मित अवधारणा है जो यह तय करती है कोई व्यक्ति कैसे व्यवहार करेगा। हमारी सामाजिक व्यवस्था में जेण्डर असमानता हर कदम पर मौजूद है। इस असमानता को दूर करने के हमें संविधान प्रदत्त अधिकारों, महिलाओं के लिए बने कानूनों और योजनाओं के बारे में जागरूक होना जरूरी है।

महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए मौजूद कानूनी ढांचे और विधिक सहायता के बारे में जानकारी देते हुए अधिवक्ता एकता साहू ने प्रतिभागियों की समस्याओं पर चर्चा की और सुझाव दिए। घरेलू हिंसा व पारिवारिक विवादों में कानूनी अधिकारों व प्रक्रिया की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि निःशुल्क सहायता का प्रावधान होने के बावजूद जब तक महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होंगीं और सहायता केंद्र तक नहीं पहुंचेंगी तब तक कानून भी प्रभावी नहीं हो सकता। उन्होंने महिलाओं से जुड़े विभिन्न विधिक मामलों से संबंधित कानूनों के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की। अधिवक्ता स्मिता गंगराड़े ने पुलिस व अदालती कार्रवाई के संदर्भ में महिलाओं के कानूनी अधिकारों की जानकारी प्रदान की।

कार्यशाला के विभिन्न सत्रों में प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए वक्ताओं से प्रश्न भी पूछे और कार्यशाला को सफल बनाने में सहयोग दिया। अंत में शबाना आजमी ने सभी वक्ताओं व प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।