कोविड महामारी के बाद ऐसी कई रिपोर्ट आईं जो दर्शाती हैं कि इस महामारी के कारण केवल स्वास्थ्य की ही हानि नहीं हुई है बल्कि कई अन्य सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में भी हानि हुई है। इन्ही में से एक क्षेत्र शिक्षा भी है। कई रेपोर्ट्स ने इस बिन्दु को रेखांकित किया है कि कोविड के कारण लोगों की शिक्षा तक पहुुँच प्रभावित हुई है। खासकर गरीब या कम आय वाले परिवारों के बच्चे शिक्षा से दूर हुए हैं। शुरुआत में इसी बिन्दु को ध्यान में रखकर मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कोविड के बाद स्कूल से ड्रॉपआउट हुए बच्चों की स्थिति जानने का विचार किया गया। चूंकि छिंदवाड़ा जिले से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर हर साल कुछ महीनों के लिए नजदीकी शहरों व राज्यों में जाते हैं तो स्वाभाविक है कि उनके बच्चों की शिक्षा वैसे भी प्रभावित होती है, बिना कोविड जैसी महामारी के। इस बिन्दु ने हमें कोविड के पहले के सालों में भी स्कूल से बच्चों के ड्रॉपआउट की स्थिति जानने के लिए प्रेरित किया तय किया गया कि इस विषय पर एक संक्षिप्त तथ्यपरक अध्ययन किया जाए।
इस तथ्यपरक अध्ययन का उद्देश्य पिछले कुछ सालों में छिंदवाड़ा जिले के शासकीय स्कूलों से ड्रॉपआउट हुए बालक-बालिकाओं की संख्या जानने के साथ-साथ यह जानना भी था कि किन कारणों से बच्चे शिक्षा से दूर हो रहे हैं? शिक्षा से दूर होने के बाद बच्चे क्या कर रहे हैं? उनमें क्या बदलाव आया है? बच्चों के माता-पिता उनकी शिक्षा के बारे में क्या विचार रखते हैं?
जिला शिक्षा केंद्र, छिंदवाड़ा से मिली जिले के 10 विकसखंडों की जानकारी और तामिया व हर्रई ब्लॉक के गांवों में स्कूल से ड्रॉपआउट हुए बच्चों, उनके माता-पिता व शिक्षकों से व्यक्तिगत बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। इस तथ्यपरक अध्ययन में बालिकाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है और प्रयास किया गया है कि उनकी कहानी उन्ही की जुबानी प्रस्तुत की जाए।