Ajay K Jha • The most positive thing that has perhaps happened in the last decade in the climate discourse has been the visibility of youth and children in climate activism. Greta, Vanessa also Indian girls like Disha and Licipriya etc have brought in immense energy world over among the youth. Children have been active in bringing legal action against the governments in many countries including Germany, UK, US, Poland, the Netherlands etc. beyond the activism. Only last week a class action suit has been brought by young people including a twenty week old embryo in South Korea. Manifestly, there is great hype about young people’s participation so much so that UN has also recently opened an Office for the youth at its head quarter in New York and appointed…
[caption id="attachment_3603" align="alignright" width="232"] Click to Download[/caption] हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी यह पूरी दुनिया के लिए उम्मीदों, अटकलों और निरशाओं के मौसम की शुरुआत है। जो साथी जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़े मुद्दों पर सक्रिय हैं वे इस मौसम की अहमियत समझते हैं। अगले महीने दिसम्बर में काॅप 28 का आयोजन होने जा रहा है जिसमें लगभग सारी दुनिया के प्रतिनिधि फिर एक बार इकट्ठे होंगे और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं के समाधान पर चर्चा करेंगे। इस बार काॅप के शुरू होने से पहले ही निरशाओं के बादल घिरते नजर आ रहे हैं। एक तरफ जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए जीवाश्म ईंधन की समाप्ति की चर्चाएँ काॅप का हिस्सा हैं और दूसरी तरफ इस बार काॅप का आयोजन दुनिया के एक सबसे बड़े तेल उत्पादक देश…
[caption id="attachment_3610" align="alignright" width="232"] Click to Download[/caption] काॅप 27 इस एहसास के बहुत करीब है कि हम अभी भी शताब्दी के अंत तक तापमान में तीन डिग्री से चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कगार पर हैं। यह आईपीसीसी आपको नहीं बताएगी लेकिन अगर आप वैज्ञानिक आकलन देखें, जो कहने के लिए गैर-राजनीतिक और बिना किसी समझौते के हैं, तो हम अभी भी सदी के अंत तक तीन से चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर हैं। नवीनतम यूएनईपी रिपोर्ट हमें बताती है कि यदि सभी देश अपने सभी वादों को पूरा करते हैं, जिसमें उनकी शुद्ध शून्य प्रतिबद्धताएं या अब तक की प्रतिज्ञाएं शामिल हैं, तो सदी के अंत तक तापमान में 2.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी। पर हम जानते हैं कि ये देश अपने वादों को पूरा करने…
[caption id="attachment_3611" align="alignright" width="232"] Click to Download[/caption] 5 जून 2022 को हर वर्ष की तरह विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। पर्यावरण दिवस मनाने की प्रथा 5 जून 1972 में शुरू हुई थी जब स्टाॅकहोम में मानव पर्यावरण की वैश्विक बैठक के सफल आयोजन पर राष्ट्रसंघ की आमसभा ने हरेक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाना तय किया। स्टाॅकहोम की बैठक की थीम ‘केवल एक दुनिया’ (Only One World) थी। इस वर्ष भी पर्यावरण दिवस की थीम ‘केवल एक दुनिया’ ही थी। इस वर्ष स्टाॅकहोम बैठक की पचासवीं सालगिरह मनाने के लिए स्टाॅकहोम में 'STOCKHOLM+50' के नाम से महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय बैठक आयोजित की गई जिसमें दुनिया के कई देशों ने हिस्सा लिया और पर्यावरण के कई पहलुओं पर अपनी चिंता जताई। यह बेहद दुःखद है कि…
[caption id="attachment_3609" align="alignright" width="230"] Click to Download[/caption] काॅप 26 चुनौतीपूर्ण था। इस काॅप में पेरिस रूल बुक को अंतिम रूप देने के लिए कुछ अहम मुद्दों पर फैसला लिया जाना था। आर्टिकल 6- सहकारी तंत्र (बाजार और गैर-बाजार आधारित दृष्टिकोण सहित), एनडीसी के लिए समान समय सीमा और उन्नत पारदर्शिता तंत्र के लिए रिपोर्टिंग प्रारूप/तालिकाएं आदि मुद्दे थे, जिन पर बात की जानी थी। इसके अलावा अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य व हानि और क्षति (वित्तीय सुविधा का निर्माण) के संबंध में इस काॅप से अपेक्षाएं भी थीं। जलवायु कोष और अनुकूलन कोष भी बड़े मुद्दे थे। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा, जो विकसित और विकासशील देशों के बीच सहयोग के लिए महत्वपूर्ण था, जलवायु कोष और 100 अरब अमेरिकी डाॅलर का वितरण था। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा शमन महत्वाकांक्षा पर औद्योगिक…
अजय झा. संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (भ्स्च्थ्) के कंधों पर वर्तमान अस्थिर दुनिया से ग़रीबी व भूख मिटाने और एक दषक में पारिस्थितिक संतुलन सुनिष्चित करने में मदद करने की ज़िम्मेदारी है। ऐसे समय में जहाँ लगभग चार मिलियन लोग मारे गए, तकरीबन 190 मिलियन लोग बीमार हुए और करोड़ों लोग भुखमरी व अत्यधिक ग़रीबी में घिर चुके हैं, 7.9 मिलियन लोगों की आकांक्षाएँ एचएलपीएफ पर एक अटूट कर्तव्य बन जाती हैं। स्थिरता और जलवायु, जैव विविधता का तेजी से ॉास और निम्न व मध्यम आय वाले देषों के लिए असमानता व ग़रीबी के जाल के मौजूदा संकटों में वृद्धि करते हुए कोविड 19 महामारी ने न केवल आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों, बल्कि सतत् विकास लक्ष्यों ;ैक्ळेद्ध को प्राप्त करने की दिषा में जो भी प्रगति की है, उसे एक गंभीर झटका दिया है। यह…
जून के अंत तक कोविड-19 महामारी से पूरी दुनिया में कम से कम 18 करोड़ बीमार हुए और 39 लाख 30 हजार लोग मारे गए हैं। भारत में भी तीन करोड़ से अधिक लोग बीमार और 3,97000 से अधिक मौतें हुई हैं। जहाँ बीमार लोगों की संख्या में भारत अमरीका से पीछे दूसरे स्थान पर है वहीं मौत के आंकड़े में भारत अमरीका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है। अमरीका में तकरीबन छः लाख और ब्राजील में 5,14,000 लोग मारे जा चुके हैं। महामारी ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाएँ, सामाजिक सुरक्षा, नौकरी व रोज़गार सभी कुछ चैपट हो गया और इसकी भरपाई में काफ़ी समय लगने की आषंका है। ग़रीब देषों की जनता, मज़दूर, बुज़ुर्गों और महिलाओं पर सर्वाधिक प्रभाव…
[caption id="attachment_3024" align="alignright" width="227"] Click to Download[/caption] कोविड-19 महामारी एक ऐसे संकट की तरह सामने आई है जिसका सामना इससे पहले शायद ही पूरी दूनिया ने कभी एक साथ किया हो। दो वर्ष से भी कम समय में किसी बीमारी से लाखों की तादाद में लोगों के मारे जाने, और करोड़ों लोगों के ग़रीबी और भुखमरी का षिकार होने का आंकड़ा भयावह है। अमरीका, ब्राजील और भारत इस महामारी के भयावह रूप को देखने वाले शीर्ष तीन देष रहे। भारत में ही तीन करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं और तकरीबन चार लाख लोगों की मौत हुई है। ऐसी स्थिति में जब लोग महामारी से आतंकित रहे, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और वैक्सीन की अनुपलब्धता सरकारी प्रयासों की आलोचना का केन्द्र रहे हैं। दवाओं पर एकाधिकार भी चर्चाओं का…
[caption id="attachment_3026" align="alignright" width="229"] Click to Download[/caption] पिछले कुछ सालों में हमारी केन्द्र सरकार लगातार ऐतिहासिक फैसले लेती आ रही है। ऐतिहासिक इस मामले में भी कि उन फैसलों पर सरकार की बड़े पैमाने पर आलोचना हुई है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के फैसले ने 50 लाख लोगों से उनका रोजगार छीन लिया। 2020 के मार्च में चार घंटे की मोहलत देकर किए गए लाॅकडाउन ने हजारों मजदूरों को पैदल घरों की ओर कूच करने के लिए मजबूर किया जिसमें सैकड़ों की मौत हो गई। सरकार ने ये दोनों फैसले अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और कोविड की रोकथाम से लिहाज से ऐतिहासिक बताए थे। इसके बाद 5 जून को सरकार ने कृषि से जुड़े तीन और ऐतिहासिक फैसले लिए हैं जिनका नतीजा है कि देष…