3 अक्टूबर 2024 को पत्रकार सुकन्या शांता की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि तीन महीने के भीतर जेल मैनुअल को अपडेट किया जाए। सुकन्या शांता ने अपनी याचिका में जेल में जातिगत भेदभाव को उजागर किया था। जेल पुलिस व्यवस्था का ही एक हिस्सा है। अब हाल ही में काॅमन काॅज और सेंटर फाॅर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति प्रोग्राम द्वारा जारी एक और रिपोर्ट बताती है कि पुलिस बल किस तरह भेदभावपूर्ण पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है और उसका कुछ हिस्सा हिंसा का समर्थक है। लगभग एक चैथाई पुलिसकर्मी जनता के बीच पुलिस पर ‘भरोसे’ के बजाय उसका ‘डर’ बिठाने के समर्थक हैं। यह चिंताजनक है, और शायद यही वजह है कि पुलिस द्वारा बल के दुरुपयोग की घटनाएं लगातार हो रही हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि ऐसी घटनाओं के जिम्मेदारों पर अमूमन कोई कार्रवाई नहीं होती। शायद यही वह बातचीत में मुहावरे के तौर पर कही जाने वाली ‘वर्दी की गर्मी’ है जो कमजोरों को झुलसाने के बाद भी जस की तस बरकरार रहती है।
इस वर्दी की गर्मी से अलग मौसम की गर्मी भी कमजोरों का जीना मुहाल कर रही है। मार्च में ही देश के कई हिस्सों में तापमान 40 डिग्री पार कर चुका था। पूरे भारत में मार्च में असामान्य रूप से जल्दी और तेज गर्मी की लहरों का सामना लोगों ने किया। बीते साल मार्च से जून तक 700 से ज्यादा लोगों की मौत लू के कारण हुई। इस साल भी मौसम के उतार-चढ़ाव के जो अनुमान हैं वे चिंताजनक हैं। जाहिर है कि ऐसी तीव्र गर्मी का सबसे ज्यादा प्रकोप वे झेलते हैं जो सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर हैं। सिर्फ तापमान ही नहीं बढ़ रहा है बल्कि गर्मी सूचकांक (हीट इंडेक्स) में भी बदलाव हो रहा है, जिसके गंभीर परिणाम न केवल मनुष्य पर बल्कि हर जीव पर पड़ रहे हैं। निश्चित ही यह जलवायु परिवर्तन का परिणाम है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। लेकिन क्या जलवायु परिवर्तन की मुख्यधारा की चर्चाओं में यह सबसे कमजोर तबका केन्द्र में है। यकीनन नहीं, तभी तो फरवरी 2025 में आयोजित एशिया पेसिफिक पीपुल्स फोरम ऑन सस्टेनेबल डेवलपमेंट में 130 से अधिक नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों ने ‘लोगों के लिए विकास एजेंडा को पुनः प्राप्त करना, एशिया और प्रशांत में विकास न्याय को आगे बढ़ाना’ जैसे विषय पर संवाद किया और जलवायु परिवर्तन से निपटने की वर्तमान प्रगति के खिलाफ मौन प्रदर्शन किया।
पैरवी संवाद के इस अंक में हमने इन्हीं मुद्दों पर चर्चा का प्रयास किया किया है। हमेशा की तरह गतिविधियों के संक्षिप्त समाचार भी हैं। आशा है इस अंक पर आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव हमें जरूर प्राप्त होंगे।
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