अजय झा.
संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (भ्स्च्थ्) के कंधों पर वर्तमान अस्थिर दुनिया से ग़रीबी व भूख मिटाने और एक दषक में पारिस्थितिक संतुलन सुनिष्चित करने में मदद करने की ज़िम्मेदारी है। ऐसे समय में जहाँ लगभग चार मिलियन लोग मारे गए, तकरीबन 190 मिलियन लोग बीमार हुए और करोड़ों लोग भुखमरी व अत्यधिक ग़रीबी में घिर चुके हैं, 7.9 मिलियन लोगों की आकांक्षाएँ एचएलपीएफ पर एक अटूट कर्तव्य बन जाती हैं। स्थिरता और जलवायु, जैव विविधता का तेजी से ॉास और निम्न व मध्यम आय वाले देषों के लिए असमानता व ग़रीबी के जाल के मौजूदा संकटों में वृद्धि करते हुए कोविड 19 महामारी ने न केवल आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों, बल्कि सतत् विकास लक्ष्यों ;ैक्ळेद्ध को प्राप्त करने की दिषा में जो भी प्रगति की है, उसे एक गंभीर झटका दिया है। यह एचएलपीएफ के सामने बहुपक्षवाद, राजनीतिक महत्वाकांक्षा और साहस दिखाने के लिए परीक्षा की घड़ी है जहाँ सामान्य अंतर-सरकारी प्रक्रिया से एक क़दम आगे बढ़कर एजेंडा 2030 के वादे को पूरा करने के लिए कुछ बेहतर किया जा सकता है।
मंत्रिस्तरीय घोषणा, जो एचएलपीएफ का प्रमुख परिणाम है, ने अर्थव्यवस्था, समाज, स्वास्थ्य और आजीविका पर कोविड 19 महामारी के प्रतिकूल प्रभावों की पहचान करने के अलावा एजेंडा 2030 और सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में इस महामारी के गंभीर प्रभावों की पहचान करने का अच्छा काम किया है। हम 2030 एजेंडा को लागू करने की दिषा में कमजोर स्थितियों वाले देषों पर ध्यान केंद्रित करने, श्रम अधिकारों की रक्षा और प्रेषण शुल्क को कम करने, देखभाल अर्थव्यवस्था में निवेष बढ़ाने सहित जेंडर रेस्पॉन्सिव रिकवरी के दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने व त्वरित प्रगति के आह्वान का स्वागत करते हैं। हालाँकि, हम इस घोषणा में दुनिया के सामने मौजूद संकटों के अनुरूप महत्वाकांक्षा की कमी से बहुत दुखी हैं। यह मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र परिवर्तनकारी के बजाय एक रूढ़िवादी और पारंपरिक दृष्टिकोण वाला है। केवल पुरानी प्रतिबद्धताओं की पुष्टि करना (जो महामारी से पहले भी स्पष्ट रूप से अपर्याप्त थीं) इस संकट की घड़ी में पर्याप्त नहीं है। जलवायु परिवर्तन, निष्कर्षणवादी अर्थव्यवस्थाओं से अनंत विकास की मांग, असमान शक्ति संबंध, अस्थिर ऋण और अवैध वित्तीय प्रवाह, एक राजनीतिक उपकरण के रूप में पितृसत्ता, शासन पर कॉर्पोरेट कब्जा, विकास व स्थिरता का एजेंडा और मानवाधिकारों की पूर्ति व सम्मान पर इसके प्रभाव जैसी प्रणालीगत बाधाओं को संबोधित करने से लगातार इनकार भी चिंताजनक है।
हालाँकि, महामारी द्वारा दिए गए झटके के आलोक में हमें एजेंडा 2030, दृढ़ राजनीतिक महत्वाकांक्षा और कार्यान्वयन के साधनों सहित जोरदार बहुपक्षीय प्रयासों को पूरा करने के लिए एचएलपीएफ में नए सिरे से विष्वास क़ायम करने की आवष्यकता है। महामारी से उबरने और एजेंडा 2030 को प्राप्त करने के लिए केवल राष्ट्रीय प्रयास काफी नहीं होंगे। इस पृष्ठभूमि में सीएसओ, एचएलपीएफ और सदस्य राज्यों से महामारी के पीछे न छिपने और एक ऐसे मजबूत राजनीतिक (मंत्रिस्तरीय) घोषणापत्र के साथ बाहर आने का आह्वान करते हैं जो बहुपक्षवाद में विष्वास, महामारी से उबरने और एजेंडा 2030 के किसी को पीछे न छोड़ने के केंद्रीय दर्षन को आष्वस्त करता हो। हमारा प्रस्ताव है कि घोषणापत्र को लोगों की निम्नलिखित चिंताओं का समाधान करना चाहिए-
टीकों और उपचार तक समान रूप से मुफ़्त पहुँचः
इस समय दुनिया को जिस चीज की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वह है वैक्सीन तक समान पहुँच। एचएलपीएफ को उन देषों को प्रोत्साहित करना चाहिए जो वैक्सीन को पेटेंटमुक्त कराने के लिए प्रयासरत हैं। इसके साथ ही बुनियादी ढांचे और क्षमता अंतराल, वैक्सीन निर्माताओं के प्रतिरोध, कच्चे माल पर प्रतिबंध और व्यापार संबंधी प्रतिबंधों व टीके की आवाजाही और वितरण की सुविधा से संबंधित अन्य बाधाओं को दूर करने के प्रयास करना चाहिए। पहुंच और उपलब्धता के अलावा यह भी महत्वपूर्ण है कि वैक्सीन संबंधी आवष्यकताओं पर सार्वभौमिक अनिवार्य मापदण्ड या आवष्यक वस्तुओं, व्यक्तियों की आवाजाही संबंधी नियमन लागू न किए जाएँ। विषेषज्ञों का मानना है कि महामारी तब तक ख़त्म नहीं होगी जब तक कि विष्व की 70 प्रतिषत जनसंख्या सुरक्षित नहीं हो जाती। हम धनी देषों द्वारा ग़रीब देषों को वैक्सीन की एक बिलियन खुराक वितरित करने के प्रयास की सराहना करते हैं, लेकिन इस क़दम को मुफ़्त टीके के लिए समान सार्वभौमिक पहुँच बनाने की तत्काल आवष्यकता से प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिए।
ग़रीबी और भूख के उन्मूलन से पीछे न हटेंः
महामारी के बावजूद ग़रीबी और भूख का उन्मूलन संभव है। घोषणापत्र के मसौदे से लगता है कि महामारी ने एसडीजी-1 और एसडीजी-2 के लक्ष्य को हासिल करना नामुमकिन बना दिया है। हम एचएलपीएफ से आग्रह करते हैं कि वह ग़रीबी और भूख के उन्मूलन में कोई कसर न छोड़े जो कि एजेंडा 2030 के वादे का प्रमुख बिंदु है।
कार्यान्वयन के साधनों के बिना इरादों से एजेंडा 2030 हासिल नहीं किया जा सकताः
52 साल पहले बनाया गया विकसित देषों की सकल राष्ट्रीय आय के 0.7 प्रतिषत का आकांक्षी लक्ष्य आज दुनिया को ग़रीबी से छुटकारा दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। जलवायु संकट और उसके प्रभावों को रोकने के लिए 100 बिलियन अमरीकी डालर भी समान रूप से अपर्याप्त है। विकासषील देषों को 2030 तक हर साल 2.5 से 3 ट्रिलियन डॉलर के वित्तीय अंतर का सामना करना होगा। वैष्विक शक्ति संबंधों में विषमता को दूर करने, ऋण स्थिरता, अवैध वित्त प्रवाह को रोकने आदि जैसी प्रणालीगत बाधाओं को दूर करने के अलावा सहायता, वित्त, व्यापार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण सहित कार्यान्वयन के साधनों की पूरी श्रृंखला को तैनात करने की आवष्यकता है।
जलवायु संकट पर वास्तविक और गंभीर प्रतिक्रियाः
जलवायु संकट निस्संदेह ग़रीबी और भूख के उन्मूलन के अलावा भी एसडीजी के बहुमत को प्राप्त करना असंभव बनाता है। भले ही 2020 में महामारी के कारण दुनिया एक महत्वपूर्ण समय के लिए बंद थी, लेकिन फिर भी 2020 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा। उत्सर्जन केवल मामूली रूप से कम हुआ जो कि वापसी का दावा कर रहा है। कोविड और जलवायु से एक साथ प्रभावित करोड़ों लोगों ने केवल जीवित रहने और बीमार होने से बचने के लिए संघर्ष किया क्योंकि निम्न व मध्यम आय वाले देषों में लोगों को आपदा से निकालने और कोविड के अनुरूप व्यवहार का पालन करने के लिए कोई भी बुनियादी ढांचा पर्याप्त नहीं था। देषों ने भयानक रूप से अपर्याप्त प्रतिबद्धताओं (एनडीसी) को रखा है जो उग्र संकट का जवाब देने में विफल रही हैं। ऐसे में एचएलपीएफ देषों को प्रगतिषील विचारों, वास्तविक समाधानों पर एक साथ लाने और आम ज़मीन तलाषने के लिए एक अतिरिक्त अवसर होना चाहिए।
विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष केवल निजी क्षेत्र का नहींः
इस दुनिया को टिकाऊ और समावेषी बनाने में एसटीआई की महत्वपूर्ण भूमिका है। हालांकि, एसटीआई को केवल संस्थागत विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचार के रूप में अधिक परिभाषित किया जा रहा है, जिसे अक्सर निजी क्षेत्र द्वारा समर्थित किया जाता है। एसटीआई के इस संकीर्ण दृष्टिकोण में स्वदेषी आबादी, महिलाओं, किसानों के सदियों के अनुभव पर विकसित व्यापक ज्ञान प्रणाली शामिल नहीं है। विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार के बढ़ते उपयोग सभी के लिए उपयोगी होने चाहिए और आवष्यकता, हितों के टकराव व दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता के लिए इसकी उपयोगिता पर आधारित एक मजबूत समावेषी तंत्र द्वारा निर्देषित होना चाहिए।
हम बेहद चिंतित हैं कि कई एचएलपीएफ मंत्रिस्तरीय घोषणाओं के लिए मतदान किया जा रहा है। यह और भी बुरा था कि एचएलपीएफ 2020 में एक भी घोषणा को अपनाने में विफल रहा। हम दोहराते हैं कि वह संकट जो इससे पहले कभी नहीं हुआ, एक अभूतपूर्व प्रतिक्रिया की माँग करता है। संयुक्त राष्ट्र एक अंतर-सरकारी मंच हो सकता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि दुनिया के लोग इसका केंद्रबिंदु हैं। इसलिए बहुपक्षवाद, एजेंडा 2030 व पारिस्थितिक संतुलन और मानवाधिकारों की केंद्रीयता वाले एसडीजी में विष्वास बहाल करने वाली प्रतिक्रिया रिकवरी और पुनर्स्थापना के सभी प्रयासों के केन्द्र में होनी चाहिए।